साइंस और मैथ में दुनिया में बाज़ी क्यों मारते हैं सिंगापुर के बच्चे?
एक छोटा सा एशियाई देश पूरी दुनिया के छात्रों के बीच होने वाले मुकाबलों में लगातार बाज़ी मारने वाला खिलाड़ी बनकर उभरा है. आखिर क्या सीक्रेट है सिंगापुर की इस कामयाबी का? ये भी जानने की बात है कि लॉकडाउन (Lockdown) में जब ऑनलाइन (Online Classes) और सेल्फ स्टडी का दौर है, तब क्या सिंगापुर मॉडल (Singapore Model) से पढ़ाई में मदद मिल सकती है.
दुनिया भर में गणित (Mathematics) और विज्ञान (Science) विषयों के मामले में सिंगापुर के छात्र छात्राएं पिछले कई सालों से सबसे आगे रहते हैं. इस एक वाक्य से सवाल पैदा होता है कि सिंगापुर की शिक्षा (Singapore Education Model) में ऐसा क्या खास है और उससे क्या सीखा जा सकता है. सिंगापुर के इन विषयों में आगे होने के कारणों के रूप में हम आपको खास बातें बताएंगे, लेकिन उससे पहले जानिए कि स्टडीज़ क्या कहती हैं.
ऐसी संस्थाएं हैं, जो समय समय पर परीक्षाएं लेकर दुनिया के कई देशों के छात्रों के स्तर और प्रतिभा संबंधी विश्लेषण करती हैं. गणित, विज्ञान और रीडिंग विषयों में 15 साल तक के छात्रों को परखने के लिए आर्थिक सहयोग और विकास के संगठन (OECD) के तहत प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल स्टूडेंट असेसमेंट यानी PISA ऐसी ही एक संस्था है. इस संस्था ने 2018 के नतीजे दिसंबर 2019 में घोषित किए थे.
79 देशों के करीब 6 लाख छात्रों ने इस संस्था के इम्तिहान में हिस्सा लिया था. इन नतीजों में चीन के कुछ हिस्सों के छात्रों ने बाज़ी मारी और दूसरे नंबर पर सिंगापुर के छात्र रहे. साल 2009 से ऐसा पहली बार हुआ कि सिंगापुर पहले के बजाय दूसरे नंबर पर दिखा. इसके अलावा, TIMSS भी एक ऐसी ही संस्था रही, जिसके नतीजे भी यही कहते रहे कि सिंगापुर के छात्र मैथ्स और साइंस में अव्वल रहे. जानिए क्यों.
ऐसी संस्थाएं हैं, जो समय समय पर परीक्षाएं लेकर दुनिया के कई देशों के छात्रों के स्तर और प्रतिभा संबंधी विश्लेषण करती हैं. गणित, विज्ञान और रीडिंग विषयों में 15 साल तक के छात्रों को परखने के लिए आर्थिक सहयोग और विकास के संगठन (OECD) के तहत प्रोग्राम फॉर इंटरनेशनल स्टूडेंट असेसमेंट यानी PISA ऐसी ही एक संस्था है. इस संस्था ने 2018 के नतीजे दिसंबर 2019 में घोषित किए थे.
79 देशों के करीब 6 लाख छात्रों ने इस संस्था के इम्तिहान में हिस्सा लिया था. इन नतीजों में चीन के कुछ हिस्सों के छात्रों ने बाज़ी मारी और दूसरे नंबर पर सिंगापुर के छात्र रहे. साल 2009 से ऐसा पहली बार हुआ कि सिंगापुर पहले के बजाय दूसरे नंबर पर दिखा. इसके अलावा, TIMSS भी एक ऐसी ही संस्था रही, जिसके नतीजे भी यही कहते रहे कि सिंगापुर के छात्र मैथ्स और साइंस में अव्वल रहे. जानिए क्यों.
कारण 1 : मज़बूत फाउंडेशन
विशेषज्ञ मानते हैं कि सिंगापुर में छात्रों में शुरू से ही विषयों की गहरी समझ पैदा करने के लिए सिलेबस पर खास तौर से ध्यान दिया जाता है. सिलेबस ऐसे डिज़ाइन किया जाता है कि हर अगली क्लास, पिछली क्लास के आगे से मज़बूती दे सके. एक तरफ अमेरिका है, जहां हर साल बच्चे ज़्यादा से ज़्यादा चीज़ याद कर लें, इस पर ज़ोर रहता है. वहीं सिंगापुर में ज़ोर होता है कि छात्र हर साल कुछ ही कॉंसेप्ट्स समझें लेकिन पूरी मास्टरी के सथ.
सिंगापुर में छात्र केवल परीक्षा पास करने के लिए विषय पढ़ नहीं रहे होते बल्कि उस तथ्य को समझ रहे होते हैं. इससे होता ये है कि सिंगापुर के छात्र अपनी समझ से दुनिया के अन्य छात्रों की तुलना में आगे होते हैं क्योंकि बाकी ज़्यादातर जगहों पर छात्रों में याद करने की प्रवृत्ति के विकास पर ज़ोर रहता है.
कारण 2 : दिमागी विकास की अप्रोच
माइंडसेट साइकोलॉजी विशेषज्ञ कैरोल ड्वेक मानती हैं कि इंटेलिजेंस कोई स्थायी चीज़ नहीं बल्कि कड़ी मेहनत और शिक्षा से लगातार विकसित की जा सकने वाली चीज़ है और इसी थ्योरी को ग्रोथ माइंडसेट कहते हैं. इस अप्रोच से ये भी होता है कि छात्र मुश्किल विषय को घबराकर छोड़ने के बजाय उसका डटकर सामना करने का एटिट्यूड पाते हैं और लगातार कोशिश से उसे समझ पाते हैं.
विशेषज्ञों की राय पर आधारित एजुकेशनवर्ल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक सिंगापुर के शिक्षा मंत्रालय का मानना है कि रिसर्च आधारित अध्यापन कला की अप्रोच अपनाने से छात्रों में टेस्ट के बाद भी उस सबक की समझ रहती है, जो वो एक बार सीख चुके होते हैं. इस अप्रोच से छात्रों को अपने दिमागी स्तर को लगातार विकसित करने में मदद मिलती है और वो एडवांस्ड मैथ जैसे मुश्किल विषय आने पर भी अपनी समझ पर टिके रहते हैं.
कारण 3 : विज़ुअल लर्निंग
वर्ड प्रॉब्लम्स को लेकर सिंगापुर गणित में एक अलग अप्रोच अपनाता है. मॉडल ड्रॉइंग के ज़रिये वर्ड प्रॉब्लम्स को समझना और हल करना सिखाया जाता है. यह विज़ुअल लर्निंग का एक तरीका है, जो छात्रों को बेहतर ढंग से अपील कर पाता है. इस अप्रोच के चलते दुनिया भर के छात्रों से सिंगापुर के छात्र बाज़ी मार ले जाते हैं. इस तरीके में सवाल में छुपे शब्दों के सामान्य अर्थ के बजाय उन्हें तस्वीर बनाकर उन अर्थों के कॉंसेप्ट समझाए जाते हैं.
अमेरिकी टीचर्स और शिक्षाविद मानते हैं कि इस तकनीक से न केवल सिंगापुर के छात्र बेहतर प्रदर्शन कर पाते हैं बल्कि वो ज़्यादा आत्मविश्वासी होते हैं और कठिन विषयों में रुचि लेने वाले छात्रों के रूप में सामने आते हैं.
विशेषज्ञ मानते हैं कि सिंगापुर में छात्रों में शुरू से ही विषयों की गहरी समझ पैदा करने के लिए सिलेबस पर खास तौर से ध्यान दिया जाता है. सिलेबस ऐसे डिज़ाइन किया जाता है कि हर अगली क्लास, पिछली क्लास के आगे से मज़बूती दे सके. एक तरफ अमेरिका है, जहां हर साल बच्चे ज़्यादा से ज़्यादा चीज़ याद कर लें, इस पर ज़ोर रहता है. वहीं सिंगापुर में ज़ोर होता है कि छात्र हर साल कुछ ही कॉंसेप्ट्स समझें लेकिन पूरी मास्टरी के सथ.
सिंगापुर में छात्र केवल परीक्षा पास करने के लिए विषय पढ़ नहीं रहे होते बल्कि उस तथ्य को समझ रहे होते हैं. इससे होता ये है कि सिंगापुर के छात्र अपनी समझ से दुनिया के अन्य छात्रों की तुलना में आगे होते हैं क्योंकि बाकी ज़्यादातर जगहों पर छात्रों में याद करने की प्रवृत्ति के विकास पर ज़ोर रहता है.
कारण 2 : दिमागी विकास की अप्रोच
माइंडसेट साइकोलॉजी विशेषज्ञ कैरोल ड्वेक मानती हैं कि इंटेलिजेंस कोई स्थायी चीज़ नहीं बल्कि कड़ी मेहनत और शिक्षा से लगातार विकसित की जा सकने वाली चीज़ है और इसी थ्योरी को ग्रोथ माइंडसेट कहते हैं. इस अप्रोच से ये भी होता है कि छात्र मुश्किल विषय को घबराकर छोड़ने के बजाय उसका डटकर सामना करने का एटिट्यूड पाते हैं और लगातार कोशिश से उसे समझ पाते हैं.
विशेषज्ञों की राय पर आधारित एजुकेशनवर्ल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक सिंगापुर के शिक्षा मंत्रालय का मानना है कि रिसर्च आधारित अध्यापन कला की अप्रोच अपनाने से छात्रों में टेस्ट के बाद भी उस सबक की समझ रहती है, जो वो एक बार सीख चुके होते हैं. इस अप्रोच से छात्रों को अपने दिमागी स्तर को लगातार विकसित करने में मदद मिलती है और वो एडवांस्ड मैथ जैसे मुश्किल विषय आने पर भी अपनी समझ पर टिके रहते हैं.
कारण 3 : विज़ुअल लर्निंग
वर्ड प्रॉब्लम्स को लेकर सिंगापुर गणित में एक अलग अप्रोच अपनाता है. मॉडल ड्रॉइंग के ज़रिये वर्ड प्रॉब्लम्स को समझना और हल करना सिखाया जाता है. यह विज़ुअल लर्निंग का एक तरीका है, जो छात्रों को बेहतर ढंग से अपील कर पाता है. इस अप्रोच के चलते दुनिया भर के छात्रों से सिंगापुर के छात्र बाज़ी मार ले जाते हैं. इस तरीके में सवाल में छुपे शब्दों के सामान्य अर्थ के बजाय उन्हें तस्वीर बनाकर उन अर्थों के कॉंसेप्ट समझाए जाते हैं.
अमेरिकी टीचर्स और शिक्षाविद मानते हैं कि इस तकनीक से न केवल सिंगापुर के छात्र बेहतर प्रदर्शन कर पाते हैं बल्कि वो ज़्यादा आत्मविश्वासी होते हैं और कठिन विषयों में रुचि लेने वाले छात्रों के रूप में सामने आते हैं.
कारण 4 : मूल सिद्धांत है पेपरलेस लर्निंग
सिंगापुर में छात्रों को गणित या विज्ञान के सवाल या फॉर्मूले हल करने के दौरान मन ही मन गणना करने के लिए उत्साहित किया जाता है. इस तरह की प्रैक्टिस से छात्र न केवल सवालों को जल्दी समझ पाते हैं बल्कि मेंटल मैथ्स की तकनीकों से आसानी और बेहतरी के साथ उन्हें सुलझा भी पाते हैं.
सिंगापुर मॉडल के ये मैथड आप घर पर अपनाएं
पिछले करीब दो दशकों से सिंगापुर शिक्षा खास तौर से गणित, विज्ञान और रीडिंग जैसे विषयों में दुनिया के लिए मॉडल बनकर उभरा. सिंगापुर में शिक्षा सुधार की शुरूआत 1980 के दशक में हुई थी. ब्रिटेन से आज़ाद होने के बाद शिक्षा के ब्रिटिश ढांचे को अपनाने के बजाय सिंगापुर के कई विशेषज्ञों ने मिलकर एक शिक्षा व्यवस्था बनाई थी, जिसके सकारात्मक नतीजे कुछ समय से दिख रहे हैं. सिंगापुर के विशेषज्ञ जो तकनीकें अपनाते हैं, उनमें से कुछ आप भी अपने बच्चों के लिए अपनाएं तो बेहतर नतीजे मिल सकते हैं.
सिंगापुर में छात्रों को गणित या विज्ञान के सवाल या फॉर्मूले हल करने के दौरान मन ही मन गणना करने के लिए उत्साहित किया जाता है. इस तरह की प्रैक्टिस से छात्र न केवल सवालों को जल्दी समझ पाते हैं बल्कि मेंटल मैथ्स की तकनीकों से आसानी और बेहतरी के साथ उन्हें सुलझा भी पाते हैं.
सिंगापुर मॉडल के ये मैथड आप घर पर अपनाएं
पिछले करीब दो दशकों से सिंगापुर शिक्षा खास तौर से गणित, विज्ञान और रीडिंग जैसे विषयों में दुनिया के लिए मॉडल बनकर उभरा. सिंगापुर में शिक्षा सुधार की शुरूआत 1980 के दशक में हुई थी. ब्रिटेन से आज़ाद होने के बाद शिक्षा के ब्रिटिश ढांचे को अपनाने के बजाय सिंगापुर के कई विशेषज्ञों ने मिलकर एक शिक्षा व्यवस्था बनाई थी, जिसके सकारात्मक नतीजे कुछ समय से दिख रहे हैं. सिंगापुर के विशेषज्ञ जो तकनीकें अपनाते हैं, उनमें से कुछ आप भी अपने बच्चों के लिए अपनाएं तो बेहतर नतीजे मिल सकते हैं.
● कभी न कहें 'मैं गणित/विज्ञान में खराब हूं' क्योंकि हर बच्चा किसी भी विषय में अच्छा हो सकता है. ज़रूरत है आत्मविश्वास और साथ की.
● अपने बच्चे को कई तरह से सीखने समझने में मदद करें. मसलन बोलते हुए सोचकर, तस्वीरें बनाकर या कोई फिज़िकल मॉडल बनाकर.
● सही जवाब के बजाय लगातार कोशिशों, व्याख्याओं और सवाल के जवाब के लिए डटे रहने के लिए बच्चे की तारीफ करें. गलतियों पर उसे लर्निंग के लिए प्रोत्साहित करते हुए आत्मविश्वास बढ़ाएं.
● रोज़मर्रा की बातों में मैथ्स और साइंस को रोचक ढंग से शामिल कर लें. जैसे बच्चे से पूछें कि स्कूल के रास्ते में कितने वाहन कहीं खड़े हुए दिखे.
● बजाय इसके कि जैसे आपने सीखा या समझा था, बच्चे कैसे सीख या समझ पाते हैं, इस पर ज़ोर दें. उनके साथ बातचीत करके उनका मन टटोलें और उनकी समझ के हिसाब से उन्हें सिखाएं.
ये भी गौरतलब है कि 2012 PISA टेस्टिंग के बाद भारत ने अपने छात्रों को इसमें भाग लेने पर रोक लगा दी थी क्योंकि भारत का आरोप था कि इस टेस्ट में भारत के छात्र इसलिए बेहतर नहीं कर पाते क्योंकि पूछे जाने वाले सवाल 'अलग सामाजिक और सांस्कृति परिवेश' के होते हैं. यानी 'आम' की जगह 'एवेकैडो' होने से भारतीय बच्चे सवालों से कनेक्ट नहीं कर पाते. इस बारे में भारत ने OECD को लिखा भी था. बहरहाल, भारत ने 2020 से PISA टेस्टिंग में अपने छात्रों को फिर भाग लेने की इजाज़त देने की बात कही थी.
● अपने बच्चे को कई तरह से सीखने समझने में मदद करें. मसलन बोलते हुए सोचकर, तस्वीरें बनाकर या कोई फिज़िकल मॉडल बनाकर.
● सही जवाब के बजाय लगातार कोशिशों, व्याख्याओं और सवाल के जवाब के लिए डटे रहने के लिए बच्चे की तारीफ करें. गलतियों पर उसे लर्निंग के लिए प्रोत्साहित करते हुए आत्मविश्वास बढ़ाएं.
● रोज़मर्रा की बातों में मैथ्स और साइंस को रोचक ढंग से शामिल कर लें. जैसे बच्चे से पूछें कि स्कूल के रास्ते में कितने वाहन कहीं खड़े हुए दिखे.
● बजाय इसके कि जैसे आपने सीखा या समझा था, बच्चे कैसे सीख या समझ पाते हैं, इस पर ज़ोर दें. उनके साथ बातचीत करके उनका मन टटोलें और उनकी समझ के हिसाब से उन्हें सिखाएं.
ये भी गौरतलब है कि 2012 PISA टेस्टिंग के बाद भारत ने अपने छात्रों को इसमें भाग लेने पर रोक लगा दी थी क्योंकि भारत का आरोप था कि इस टेस्ट में भारत के छात्र इसलिए बेहतर नहीं कर पाते क्योंकि पूछे जाने वाले सवाल 'अलग सामाजिक और सांस्कृति परिवेश' के होते हैं. यानी 'आम' की जगह 'एवेकैडो' होने से भारतीय बच्चे सवालों से कनेक्ट नहीं कर पाते. इस बारे में भारत ने OECD को लिखा भी था. बहरहाल, भारत ने 2020 से PISA टेस्टिंग में अपने छात्रों को फिर भाग लेने की इजाज़त देने की बात कही थी.
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